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क्या AI हमारी प्यास बुझाने का पानी पी रहा है? AI और पानी की खपत: भविष्य की चिंता का संकेत
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आज हर क्षेत्र में क्रांति ला रहा है, लेकिन इसके बढ़ते इस्तेमाल से एक नया खतरा सामने आ रहा है—पीने के पानी की बढ़ती खपत। AI को ट्रेन और ऑपरेट करने के लिए भारी मात्रा में बिजली की जरूरत होती है, और डेटा सेंटर्स को ठंडा रखने के लिए पानी का जमकर इस्तेमाल होता है।
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संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की आधी आबादी पहले से ही पानी की कमी से जूझ रही है। ऐसे में AI का बढ़ता दखल इस संकट को और गंभीर बना सकता है।
कितना पानी खर्च करता है AI?
OpenAI के CEO सैम ऑल्टमैन कहते हैं कि ChatGPT एक सवाल का जवाब देने में लगभग “एक चम्मच के 15वें हिस्से” जितना पानी इस्तेमाल करता है। लेकिन एक अमेरिकी स्टडी बताती है कि GPT-3 मॉडल से 10–50 सवालों के जवाब देने में लगभग आधा लीटर पानी लगता है। यानी हर जवाब पर 2–10 चम्मच पानी खर्च हो जाता है।
यह पानी सिर्फ डेटा प्रोसेसिंग में नहीं, बल्कि बिजली उत्पादन (जैसे कोयले या परमाणु ऊर्जा से बनने वाली भाप) और सर्वर कूलिंग जैसी प्रक्रियाओं में भी खर्च होता है।
डेटा सेंटर्स और सूखा
AI प्रोसेसिंग के लिए बनाए गए डेटा सेंटर्स कई बार ऐसे इलाकों में बनते हैं जहां पहले से ही पानी की भारी कमी है—जैसे अमेरिका के एरिज़ोना, यूरोप के कुछ हिस्से, और दक्षिण अमेरिका के चिली और उरुग्वे।
गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी कंपनियों की रिपोर्ट्स बताती हैं कि उनका पानी उपयोग 2020 के बाद से दोगुना हो गया है।
गूगल अकेले 2024 में 37 अरब लीटर पानी इस्तेमाल कर चुका है, जिसमें से 29 अरब लीटर पानी भाप बनकर उड़ गया—इतना पानी 16 लाख लोगों की सालभर की पीने और जरूरत की खपत के बराबर है।
क्या कोई हल है?
कुछ कंपनियां अब “क्लोज़्ड लूप” सिस्टम पर काम कर रही हैं, जिसमें पानी को बार-बार रीसायकल किया जा सकता है। कुछ देश डेटा सेंटर्स से निकलने वाली गर्मी को घरों की हीटिंग के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
लेकिन ये तकनीकें अभी शुरुआती दौर में हैं और व्यापक स्तर पर लागू नहीं हो पाई हैं।
टिकाऊ है AI का यह विस्तार?
AI से जहां पर्यावरण की मदद की उम्मीदें हैं (जैसे ग्रीनहाउस गैसों की निगरानी), वहीं इसके अत्यधिक संसाधन उपयोग को लेकर गंभीर सवाल भी खड़े हो रहे हैं।
जैसे-जैसे AI का दायरा बढ़ेगा, उसके लिए पानी, बिजली और संसाधनों की मांग भी बढ़ेगी। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि अगर कंपनियों ने पारदर्शिता नहीं दिखाई और टिकाऊ तकनीकें नहीं अपनाईं, तो यह तकनीक एक संपत्ति नहीं, बल्कि संकट बन सकती है।
निष्कर्ष:
AI से दुनिया को लाभ हो सकता है, लेकिन अगर यह हमारी जल-व्यवस्था को निगलने लगे, तो हमें तकनीकी प्रगति और पर्यावरणीय संतुलन के बीच नई राह ढूंढ़नी होगी।
क्या हम इसके लिए तैयार हैं?
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